आज का समाज (सरसी छंद )
*आज का समाज (सरसी छंद )*
मुलाकात जब पहली होती,अतिशय आदर प्यार।
बड़े स्नेह से बातेँ करते,स्वागत मधु सत्कार।
लगता जैसे प्रेम उतर कर,करता मधुमय गान।
खुले हृदय से सब कुछ कहता,देता अति सम्मान।
दो दिल मिलते प्रेम उमड़ता,अति मोहक अहसास ।
लगता जैसे स्वज़न मिले हैं,होता प्रिय आभास ।
कभी नहीं ऐसा लगता है,मन में बैठा चोर।
मिलन सहज अनुपम प्रिय मोहक,स्नेह भाव पुरजोर।
पर य़ह स्थायी कभी न होता,बालू की दीवाल।
कपट दिखायी देने लगता,उपहासों की चाल।
लोक रीति हो गयी घिनौनी,कुटिल दृष्टि की वृष्टि।
चारोतरफ परायापन है,भेद भाव की सृष्टि।
गली गली में धूर्त विचरते, करते हैं आघात।
अपमानित करने को उद्यत,दिखलाते औकात।
खत्म हुआ विश्वास आज है,अहंकार का दौर।
चालबाज कपटी मायावी,की यह जगती ठौर।
वेश बदल कर ये चलते हैं,फैले मायाजाल।
तन मन धन का शोषण करने,को आतुर वाचाल।
नंगा नृत्य किया करते हैं,नहीं आत्म सम्मान।
मित्रों के दिल पर चाकू रख,करते कटु अपमान।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
Gunjan Kamal
09-Sep-2023 03:51 PM
👏👌
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